कोरोना का नया स्ट्रेन हार गया भारतीयों से, जानिए कैसे हुआ संभव

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नई दिल्ली : एक तरफ ब्रिटेन, ब्राजील, इटली और फ्रांस में कोरोना की दूसरी लहर बेकाबू हो चुकी है, तो वहीं आधे अमेरिका में कोविड- 19 की तीसरे वेव (नए म्यूटेशन बी117) ने तबाही मचा दी है। दूसरी ओर, भारत में कोविड-19 बीते जमाने की बात लगने लगा है और जनजीवन तेजी से सामान्य हो रहा है। संक्रमण के दूसरे दौर से हम क्यों प्रभावित नहीं हुए, इसका पता चल चुका है।

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74 शोधकर्ता पहुंचे इस निष्कर्ष पर-

बीएचयू के जीन विज्ञानी प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे के नेतृत्व में देशभर के 74 शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैैं कि भारत में दूसरे लहर की चेन टूट चुकी है। रोजाना भीड़भाड़ में रहने वाले ऐसे लोग, जिन्हें संक्रमण का खतरा सबसे अधिक है, उनके सैंपल पर यह शोध किया गया है। छह राज्यों के 14 जिलों में चार माह तक चले इस शोध में 2,306 लोगों को शामिल किया गया। तथ्यों के समाकलन के बाद पता चला कि 76 फीसद भारतीयों में कोरोना के लक्षण ही नहीं (एसिंप्टोमैटिक) हैं। 30 फीसद में एंटीबाडी बन चुकी है।

 

जबकि पूर्वांचल में 41 फीसद लोग कोविड के प्रति इम्युन (प्रतिरक्षित) हो चुके हैं। शोध में यह बात भी सामने आई कि प्रतिदिन लोगों के बीच उठने-बैठने वालों में भी कोरोना के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है। यही कारण है कि नया स्ट्रेन भारत तो आया, मगर इम्युन हो चुके लोगों पर बेअसर रहा। जो कोरोना के सबसे बड़े वाहक थे, उनमें प्रतिरोधकता विकसित हो जाने के कारण ही दूसरे लहर की शृंखला टूटीशु। यह शोध अमेरिका के मशहूर जर्नल मेड आर्काइव के प्री -प्रिंट में प्रकाशित हो चुका है।

32 संस्थानों के 74 वैज्ञानिकों ने लिया हिस्सा

शोध के मुताबिक भारत के कुल एसिंप्टोमैटिक लोगों को जोड़ लिया जाए तो कुल संक्रमितों की संख्या सरकार के आंकड़ों से 25 गुना अधिक हो जाती है। इस हिसाब से मृत्युदर भी 17 गुना कम हो जाती है। प्रो. चौबे के मुताबिक शोध में मुंबई की बायोसेंस टेक्नोलाजी की एंटीबाडी किट उपयोग में लाई गई। देश-विदेश के 32 संस्थानों के 74 वैज्ञानिकों ने इसमें हिस्सा लिया। शोध में बीएचयू लैब से प्रज्ज्वल सिंह, अंशिका श्रीवास्तव के अलावा अमेरिका की यूनिवॢसटी आफ अलबामा के प्रो. केके. सिंह, आइएमएस, बीएचयू के डा. अभिषेक पाठक व डा. पवन दुबे, कलकत्ता यूनिवर्सिटी से डा. राकेश तमांग, मंगलौर से डा. मुश्ताक आदि शामिल थे।

घरेलू उपचारों का हुआ प्रयोग

यह अध्ययन इसलिए बेहद खास है, क्योंकि भारतीयों की उच्च प्रतिरोधक क्षमता को सामने लाता है। कोविड काल ने भारत के हर घर में आयुर्वेदिक उपचारों और औषधियों की पहुंच सुनिश्चित कर दी है। अब इसकी भी जांच की जानी चाहिए कि भारत में इम्युनिटी के स्तर को बढ़ाने में आयुष की एडवाइजरी का कितना प्रभाव पड़ा है। आयुष संजीवनी एप से जुड़े डेढ़ करोड़ लोगों में से 80 फीसद ने आयुष के उपायों का उपयोग किया है।

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