नई दिल्ली : अक्षय कुमार और कियारा आडवाणी स्टारर फिल्म लक्ष्मी को लेकर पूरे समय दर्शक अलग अलग बातें कर रहे हैं. किसी ने कहा कि लक्ष्मी फिल्म के जरिए धार्मिक भावनाओं को आहत किया गया है तो किसी ने फिल्म के जरिए लव जिहाद फैलाए जाने की बात कही. सही मायने में फिल्म लक्ष्मी में ऐसा कुछ नहीं दिखाया गया है जिससे किसी का कोई अपमान नहीं हुआ है. अब जब ऐसा कोई विवाद है ही नहीं तो सीधे फिल्म ‘लक्ष्मी’ पर अपना फोकस जमाते हैं. जितना फिल्म विवादों में घिरी थी ऐसा कुछ उसके अंदर विवाद जैसा कुछ देखने को नहीं मिला।

लॉजिक से हटके है ‘लक्ष्मी’
लक्ष्मी देखनी है तो अपना लॉजिक अपने से दूर रखें, नहीं तो मजा किरकिरा होना तय है. फिल्म लक्ष्मी को सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन के लिहाज से देखें. अगर आप ऐसा करने में कामयाब रहते हैं तो फिल्म देख आप निराश नहीं होंगे. फिल्म पूरे 2 घंटे 20 मिनट तक आपके मनोरंजन का ख्याल रखेगी. ये कभी आपको गुदगुदाएगी तो कभी डराएगी. और गाने भी मज़ेदार हैं, हां ये जरूर है कि फिल्म अपने असल मुद्दे तक पहुंचने के लिए काफी टाइम लगा देती है.क्लाइमैक्स तक पहुँचते पहुँचते बहुत टाइम लग जाता है
फैंस को लुभा रहा अक्षय का करदार-
हैरानी की बात ये रही है कि हर कोई अक्षय का किन्नर लुक देखने के लिए बेकरार होगा, लेकिन उनका वो अंदाज आपको इंटरवल के बाद ही मिलने वाला है. तो पेशेंस आपको जरूरत से ज्यादा रखना पड़ेगा. तब तक आप सिर्फ कॉमेडी और गानों का आनंद लीजिये
लक्ष्मी का निर्देशन राघव लॉरेंस ने किया है जिन्होंने ऑरिजनल प्रचिलित फिल्म कंचना को भी डायरेक्ट किया था. लेकिन इस फिल्म को जिस वजह से इतना प्रमोट किया जा रहा था, वो संदेश सही अंदाज में दर्शकों तक नहीं पहुंच पाया है.
सही मैसेज से भटकी फिल्म-
फिल्म को लेकर कहा गया था कि ये देखने के बाद किन्नरों के प्रति लोगों का नजरिया बदलेगा. अब नजरिया कितना बदला ये बताना तो मुश्किल है, लेकिन क्या उनके संघर्ष को फिल्म में सही अंदाज में दिखाया गया है, तो जवाब है नहीं. फिल्म में एक किन्नर के ‘बदले’ की कहानी दिखाई गई है. किन्नरों का संघर्ष दिखाने के नाम पर सिर्फ 10 मिनट की एंड में खानापूर्ति की गई है. फिल्म का मूल संदेश कही गायब दिखता है गाने में ये रूप देखने को मिलता है