नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश की 57,978 ग्राम पंचायतों का शुक्रवार को कार्यकाल पूरा होने के कारण आधी रात से प्रधान पदमुक्त हो जाएंगे। उनके स्थान पर गावों में सहायक विकास अधिकारी (एडीओ) प्रशासक नियुक्त होंगे। उनकी नियुक्ति का अधिकार जिलाधिकारियों को सौंपा गया है। गौतमबुद्धनगर जिले के 88 और गोंडा के दस गांवों में प्रधान अपने पदों पर बने रहेंगे।

पंचायतीराज विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने बताया कि शुक्रवार को आधी रात के बाद प्रधानों से डोंगल वापस लेकर ई-ग्राम स्वराज पोर्टल पर डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट (डीएससी) अनरजिस्टर्ड कर दिए जाएंगेे। उन्होंने बताया कि ग्राम प्रधान अभी तक 15वें वित्त आयोग व पंचम राज्य वित्त आयोग से आवंटित हो रही राशि का उपभोग पब्लिक फाइनेंस मैनेंजमेंट सिस्टम (पीएफएमएस) व ई-ग्राम स्वराज के माध्यम से कर रहे थे।
छह माह के लिए प्रशासक नियुक्त :
पंचायतीराज विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने बताया कि ग्राम पंचायत की प्रथम बैठक से कार्यकाल निर्धारित किया जाता है। पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर चुनाव न हो पाने की स्थिति में प्रशासक नियुक्त किए जाते हैं, जिनकी नियुक्ति नई ग्राम पंचायत के गठन या छह माह के लिए होगी।
98 गांवों में प्रशासक नियुक्त नहीं होंगे-
उत्तर प्रदेश के 98 गांवों में प्रशासक नियुक्त नहीं होंगे। उपनिदेशक आरएस चौधरी ने बताया कि गौतमबुद्धनगर के 88 गांवों में जून 2016 में तथा गोंडा के दस गांवों में से एक में 2018 में और नौ में 2019 मेें चुनाव होने के कारण उक्त ग्राम पंचायतों का कार्यकाल पूरा होने में अभी समय है। इस कारण उक्त गांवों में प्रशासकों की नियुक्ति नहीं हो सकेगी।
अनुसूचित जाति का होगा सत्यापन :
अमरोहा, बरेली, बिजनौर, चंदौली, फर्रुखाबाद, गौतमबुद्धनगर, कासगंज, कौशांबी, मेरठ, शाहजहांपुर, सुल्तानपुर और हमीरपुर को छोड़कर अन्य जिलों में वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक अनुसूचित जनजाति की आबादी वाले गांवों में सत्यापन कराने को कहा गया है। पंचायतों के वार्डों के आरक्षण से पूर्व अनुसूचित जनजाति (एसटी) की जनसंख्या का सत्यापन कराया जाएगा। वर्ष 2015 में आबादी न होने के कारण एसटी के लिए आरक्षित किए गए ग्राम प्रधान के 35 पद रिक्त रह गए थे। वर्ष 2015 में 336 ग्राम प्रधान पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किए थे।