दिल्ली: कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसानों के आंदोलन की आड़ में कई संगठन अपनी विचारधारा को विस्तार देने में जुटे हुए हैं। खासकर वामपंथी संगठन कुछ ज्यादा ही सक्रिय नजर आ रहे हैं। ऐसे संगठन न केवल अपने एजेंडे से संबंधित बैनर-पोस्टरों की प्रदर्शनी लगाए हुए हैं, बल्कि संबंधित साहित्य की बिक्री कर वामपंथ की नई पौध उगाने की भी कवायद कर रहे हैं।
वामपंथी विचारों से जुड़े देसी और विदेशी लेखकों की पुस्तकें-
सिंघु बार्डर पर कई जगहों पर स्टाल लगाकर वामपंथी विचारों से जुड़े देसी और विदेशी लेखकों की पुस्तकें बेची जा रही हैं। इनमें माक्र्स-लेनिन से लेकर क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति व कम्युनिस्ट नेता फिदेल कास्त्रो के जीवन व उनके विचारों से संबंधित किताबें शामिल हैं।
वामपंथी साहित्य के बारे में जानकारी भी दे रहे-
फिदेल कास्त्रो अपने कार्यकाल के दौरान अपने कामों से ज्यादा महिलाओं से संबंधों के कारण सुर्खियों में रहे थे। स्टालों पर कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र जैसी किताबों की बिक्री भी की जा रही हैं। इन स्टालों पर बैठे दुकानदार लोगों को वामपंथी साहित्य के बारे में जानकारी भी देते हैं। उनके निशाने पर ज्यादातर युवा होते हैं और उन्हें इन किताबों को खरीदने के लिए जोर देते हैं।

युवाओं पर जोर दिया जाता है-
आपको बता दें दुकानदार युवाओं को इन किताबों को खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं। इनमें कई लोग किताबों को खरीदते भी है तो कई उन्हें उलट-पलटकर देखते हैं। दरअसल, किसानों के आदोलन में शाहीन बाग व वामपंथी विचारधारा से जुड़े संगठनों की धमक शुरू से ही देखी जा रही है। वामपंथी छात्र संगठन आल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) व कई ट्रेड यूनियनों ने यहां अपना स्टाल भी लगा रखा है। ऐसे संगठनों ने इस आंदोलन में घुसपैठ कर रखी है। यही नहीं, इन संगठनों के लोग युवाओं को वामपंथी विचारधारा के प्रति आकर्षित करने में लगे हुए हैं।
राष्ट्रवादी विचारों की कमी-
राष्ट्रवादी संघटनों को भी इस ओर कुछ करना चाहिए, उन्हें भी अपने साहित्य और विचारों का प्रचार-प्रसार करना चाहिये जो की इसी देश की उपज है, न की कोई विदेशी विचारधारा.