नई दिल्ली:- हाल ही में नोबल पुरस्कार विजेता और वामपंथी ‘बुद्धिजीवी’ अमर्त्य सेन का नाम ऐसे लोगों की सूची में आया है, जिन्होंने पश्चिम बंगाल स्थित विश्वभारती विश्वविद्यालय के कई भूखंडों पर अवैध रूप से कब्जा जमा रखा है।कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर के सपनों के शांतिनिकेतन स्थित विश्वभारती विश्वविद्यालय प्रबंधन ने बंगाल सरकार एक पत्र और विश्वविद्यालय के कई भूखंडों पर अवैध रूप से कब्जा करने वालों की सूची भेजी है. जिसमें अमर्त्य सेन का भी नाम आया है. इसके बाद से राज्य में राजनीति गरमा गई है।
गलत तरीके से किए हुए हैं जमीनाें पर कब्जा-
विश्वविद्यालय प्रशासन ने पश्चिम बंगाल की प्रदेश सरकार काे लिखा है कि उनकी कई संपत्ति ऐसी हैं, जिन्हें गलत तरीके से निजी पार्टियों के नाम पर दर्ज किया गया है। विश्वविद्यालय का आरोप है कि सरकार के रिकॉर्ड-ऑफ-राइट में गलत स्वामित्व दर्ज करने के कारण, विश्वविद्यालय की भूमि को अवैध रूप से ट्रांसफर कर दिया गया है और प्राइवेट लोगों ने रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा खरीदी गई भूमि पर रेस्तरां, स्कूल और अन्य व्यवसाय खोल लिए हैं।

बता दें कि कई निजी लोगों ने गलत तरीके से जमीन पर कब्जा किए हुए है। कुछ ने तो जमीन भी बेच दी है। गर्ल्स हॉस्टल, अकादमिक विभाग, कार्यालय यहां तक कि कुलपति के आधिकारिक बंगले को भी गलत दर्ज किए गए भूखंडों की सूची शामिल किया गया है।
1980 से 1990 के बीच तैयार किए गलत रिकॉर्ड-
विश्व-भारती के कार्यालयों के दस्तावेज और सीएजी की उक्त रिपोर्ट शिक्षा मंत्रालय को भेजी गई है जिसमें विश्वविद्यालय की भूमि के अतिक्रमण को 1990 के दशक के अंत में होना बताया गया है। प्रोफेसर सेन के मामले में यूनिवर्सिटी ने कहा कि विश्व-भारती सेन के दिवंगत पिता को कानूनी तौर पर पट्टे पर 125 डेसीमल जमीन लीज पर दी थी। उन्होंने इस जमीन के अलावा, 13 डिसमिल जमीन पर अनधिकृत कब्जा कर रखा है। विश्वभारती के संपदा कार्यालय के अनुसार ऐसे गलत रिकॉर्ड 1980 और 1990 के दशक में तैयार किए गए थे। इन भूखंडों में से अधिकांश शांतिनिकेतन के पुर्वापल्ली इलाके में स्थित हैं, जो कि आ पड़श्रमियों के आवासीय हब के रूप में जाना जाता है।

विश्वविद्यालय स्वामित्व के रिकॉर्ड में सुधार का उठाया मामला-
जुलाई 2020 में विश्वभारती ने विभिन्न कार्यालयों को जारी एक गोपनीय आंतरिक रिपोर्ट में कहा कि विश्वविद्यालय ने 77 भूखंडों के स्वामित्व के रिकॉर्ड में सुधार का मामला उठाया है, वहीं पुर्वपल्ली, दक्षिणपल्ली, श्रीपल्ली क्षेत्रों के पट्टे वाले भूखंडों से अनधिकृत कब्जे हटाए जाने हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये बहुत ही हाई प्रोफाइल लोग हैं।
अवैध जमीनाें पर कर रहें हैं कई व्यवसाय-
बता दें कि 99 साल की लीज के बदले में, उनमें से कुछ ने विश्व-भारती के विकास कोष में धन का योगदान दिया। हालांकि, मूल पट्टेदारों में से कई ने टैगोर और उनके बेटे के निधन के बाद अपने भूखंडों को गैर कानूनी रूप से ट्रांसफर करवा लिया। वर्तमान में अधिकांश वारिस गैर-निवासी शांतिनिकेतन हैं, जिन्हाेनें परिसर में प्रमुख भूमि के बड़े हिस्से पर कब्जा जमा रखा है. और जमीनाें पर कई व्यवसाय भी कर रहे हैं। ये लोग इन जमीनों को विश्वविद्यालय परिसर के तौर पर नहीं देखते हैं।