नई दिल्ली। पड़ोसी देश म्यांमार में सोमवार को तख्तापलट हुआ। म्यांमार की सेना ने देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू की और राष्ट्रपति विन म्यिंट समेत कई दिगज नेताओं को हिरासत में ले लिया है। सेना ने देश में एक साल के लिए आपातकाल की घोषणा करते हुए सत्ता को कब्जा लिया है। एक टेलीविजन के मुताबिक, सेना ने एक साल के लिए देश पर नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है। सेना के कमांडर-इन-चीफ मिन आंग ह्लाइंग के पास सत्ता जाती है।

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तख्तापलट की कार्रवाई-
म्यांमार में मचे इस सियासी भूचाल पर वहां की सेना का कहना है कि चुनाव में हुई धोखाधड़ी के जवाब में तख्तापलट की कार्रवाई की गई है। तख्तापलट के साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों में सेना की टुकड़ियों की तैनाती कर दी गई है। म्यांमार के मुख्य शहर यांगून में सिटी हॉल के बाहर सैनिकों को तैनात किया गया है ताकि कोई तख्तापलट का विरोध न कर सके।

राजनीतिक संकट का वास्तविक रूप-
म्यांमार में लंबे समय तक सैन्य शासन रहा है। वर्ष 1962 से लेकर साल 2011 तक देश में सैन्य तानाशाही रही है। वर्ष 2010 में म्यांमार में आम चुनाव हुए और 2011 में म्यांमार में ‘नागरिक सरकार’ बनी, जिसमें जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ देश को सौपा गया। नागरिक सरकार बनने के बाद भी असली ताकत हमेशा सेना के पास ही रही। इसलिए आज की घटना राजनीतिक संकट का वास्तविक रूप है।

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भारत ने म्यांमार के राजनीतिक घटना पर चिंता जताई है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा,” म्यांमार के घटनाक्रम से बेहद चिंतित हैं। भारत हमेशा से म्यांमार में लोकतंत्र प्रक्रिया के समर्थन में रहा है। हमारा मानना है कि देश में काननू और लोकतंत्र प्रक्रिया को बरकरार रखा जाए। म्यांमार की स्थिति पर करीब से नजर रख रहे हैं।” भारत के अलावा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने तख्तापलट पर चिंता जताई है। साथ ही म्यांमार की सेना से कानून का सम्मान करने की अपील की है।