प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट का मंगलवार को लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर महत्वपूर्ण फैसला आया है। जिसमे हाई कोर्ट ने कहा है कि शादीशुदा महिला दूसरे पुरुष के साथ पति-पत्नी की तरह रहती है तो इसे लिव-इन रिलेशनशिप नहीं माना जा सकता। किसी अन्य पुरुष अथवा स्त्री के साथ रहने पर वह शादीशुदा भारतीय दंड संहिता की धारा 494/495 के अंतर्गत अपराधी है।
लिव-इन रिलेशनशिप-
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि परमादेश विधिक अधिकारों को लागू करने या संरक्षण देने के लिए जारी किया जा सकता है, किसी अपराधी को संरक्षण देने के लिए नहीं। यदि अपराधी को सुरक्षा देने का आदेश दिया गया है तो यह अपराध को संरक्षण देना होगा। कानून के खिलाफ कोर्ट अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता।

यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी व न्यायमूर्ति डॉ. वाईके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने हाथरस जिले के ससनी थाना क्षेत्र की निवासी आशा देवी व अरविंद की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। याची आशा देवी का विवाह महेश चंद्र के साथ हुआ है। दोनों के बीच तलाक नहीं हुआ है। लेकिन, याची अपने पति से अलग दूसरे पुरुष के साथ पति और पत्नी की तरह रहती है।
यह लिव-इन रिलेशनशिप नहीं है-
याची का कहना था कि वह दोनों लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रहे हैं। उन्हें परिवार वालों से सुरक्षा प्रदान की जाए। कोर्ट ने कहा कि यह लिव-इन नहीं है, वरन दुष्कर्म का अपराध है, जिसके लिए पुरुष अपराधी है। कोर्ट ने कहा कि शादीशुदा महिला के साथ धर्मा परिवर्तन करके लिव-इन में रहना भी अपराध है। इसके लिए अवैध संबंध बनाने वाला पुरुष अपराधी है। ऐसे संबंध वैधानिक नहीं माने जा सकते।
ऐसे लोगों को कोर्ट से संरक्षण नहीं दिया जा सकता-
कोर्ट ने कहा कि जो कानूनी तौर पर विवाह नहीं कर सकते, उनका लिव-इन रिलेशनशिप में रहना, एक से अधिक पति या पत्नी के साथ संबंध रखना भी अपराध है। ऐसे लोगों को कोर्ट से संरक्षण नहीं दिया जा सकता है।