नई दिल्लीः आबादी के हिसाब से राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान की मांग करने वाली याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने सुनवाई करते हुए गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को नोटिस भेजकर 4 हफ्तों में जवाब मांगा है।

बता दें की यह याचिका बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की है. याचिका में कहा गया है कि अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक खत्म किया जाए अन्यथा देश के 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए. अश्विनी उपाध्याय ने नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी एक्ट 1992 के उस प्रावधान को खत्म करने की मांग की है, जिसके तहत देश में अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है. साथ ही गुहार लगाई गई है कि अगर कानून कायम रखा जाता है तो जिन 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, उन्हें राज्यवार स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए ताकि उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ मिल सके।

9 राज्यों में हिन्दुओं को घोषित किया जाए अल्पसंख्यक-
बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने माइनॉरिटी एक्ट की धारा-2 (C) के तहत मुस्लिम, क्रिश्चियन, सिख, बौद्ध और जैन को अल्पसंख्यक घोषित किया है लेकिन यहूदी बहाई को अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया गया. साथ ही कहा गया है कि देश के 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ नहीं मिल रहा है. याचिका में कहा गया कि लद्दाख, मिजोरम, लक्ष्यद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में हिंदू की जनसंख्या अल्पसंख्यक के तौर पर है. याचिकाकर्ता ने कहा कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक होने के कारण हिंदुओं को अल्पसंख्यक का लाभ मिलना चाहिए, लेकिन उनका लाभ उन राज्यों के बहुसंख्यक को दिया जा रहा है।
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अल्पसंख्यक दर्जा देने वाला करें खत्म-
वहीं उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि संविधान में अल्पसंख्यक शब्द दिए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट के 11 जजों की बेंच ने 2002 इसकी व्याख्या करते हुए कहा था कि भाषाई और धर्म के आधार पर जो अल्पसंख्यक माना जाएगा. याचिकाकर्ता ने कहा कि राज्यों की मान्यता भाषाई आधार पर हुई है ऐसे में अल्पसंख्यक का दर्जा राज्यवार होना चाहिए न कि देश के लेवल पर. ऐसे में भाषाई और धर्म के आधार पर स्टेटवाइज ही अल्पसंख्यक का दर्जा होना चाहिए और राज्यवार ही इस पर विचार होना चािहए. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के बाद अब अल्पसंख्यक का दर्जा राज्यवार ही होना चाहिए और वह भाषा और धर्म के आधार पर राज्यस्तर पर हो सकता है।
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माइनॉरिटी एजुकेशन एक्ट को भी है चुनौती
गौरतलब है कि 28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उस याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा था जिसमें याचिकाकर्ता ने नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी एजुकेशन इंस्ट्यूिशन एक्ट को चुनौती दी थी. याचिकाकर्ता ने कहा तब कहा था कि यह एक्ट एजुकेशनल इंस्टिट्यूट को चलाने के लिए राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों को मान्यता देने में सफल नहीं हुआ है.